
यदि आप इंटरनेट पर मृत संजीवनी कवच PDF / Mrit Sanjeevani Kavach PDF ढूंढ रहे हैं, तो इस लेख पर आपका स्वागत है। मृतसंजीवन कवच की रचना भगवान श्री राम के गुरु वशिष्ठ द्वारा की गयी थी। इस स्तोत्र के माध्यम से हक्त भगवान शिव से अपनी रक्षा हेतु प्रार्थना करता है। इस स्तोत्र के नित्य जाप करने से मनुष्य को मृत्यु का भय नहीं रहता है। गुरु वशिता ने यह कवच अपने शिष्यों को सुनाया था। हम उसी दिव्य कवच को आप सभी के कल्याण हेतु यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
हिन्दू वैदिक शास्त्रों में मृत संजीवनी कवच PDF (Mrit Sanjeevani Kavach PDF) की विशेष महिमा का वर्णन किया गया है। कहा जाता है की यह स्तोत्र देवताओं के लिए भी अति दुर्लभ है। जो व्यक्ति मरणान्त अवस्था तक पहुँच गया हो और उस पर किसी भी औषधि का प्रभाव न हो रहा हो तो अगर उस अवस्था में वह इस दिव्य कवच का श्रद्धापूर्वक पाठ करे तो उसे शिव जी की विशेष कृपा से हर कष्ट से तत्काल ही मुक्ति मिल जाती है और वह एक सुखी जीवन जीने लगता है।
Contents
मृत संजीवनी कवच PDF | Mrit Sanjeevani Kavach PDF in Hindi Details
PDF Name | मृत संजीवनी कवच PDF | Mrit Sanjeevani Kavach PDF |
No. of Pages | 8 |
PDF Size | 92 KB |
Language | Hindi |
Category | Religion & Spirituality |
Source | quickpdf.in |
Download Link | Available ✔ |
Downloads | 1108 |
Mrit Sanjeevani Kavach PDF in Hindi Significance
कहा जाता है कि यह स्तोत्र प्राणी की हर प्रकार के कष्ट से सहायता करता है। जो भी भक्त इस कवच का मन से प्रतिदिन जाप करता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती और न ही उसे किसी भी प्रकार की अकाल मृत्यु का भाय रहता है। मृत संजीवनी कवच PDF (Mrit Sanjeevani Kavach PDF) को कोई भी भक्त आसानी से सिद्ध कर सकता है। इसके एक हज़ार जाप मात्र से ही यह स्तोत्र सिद्ध हो जाता है।
मृत संजीवनी कवच PDF का पाठ करने, सुनने और दूसरों को सुनाने से भी व्यक्ति का शीगरा ही कल्याण हो जाता है। वह हर प्रकार के दोष, रोग, मोह एवं माया से शीघ्र ही मुक्त हो जाता है। यह कवच व्यक्ति की शत्रुओं से भी रक्षा करता है। प्रतिदिन पूजा – पाठ समाप्त करने के पश्चात इस स्तोत्र का भक्तिपूर्वक जाप मनुष्य के जीवन को आनंदित एवं सुखमय पूर्ण कर देता है।
मृतसंजीविनी मन्त्रः PDF | Mrit Sanjeevani Mantra PDF
। अथ मृतसंजीविनी मन्त्रः ।
शुक्र ऋषिः, गायत्री छन्दः, मृतसंजीवनी देवी देवता ।
ह्रीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, हंसः कीलकं, न्यासं मूलेन ।
विनियोगः समाख्यात स्त्रिचतुश्चैककं पुनः ।
षट् चतु द्विककेनैव षडंगानि समाचरेत् ।
१ ह्रीं हंसः, २ संजीविनि, ३ जूं, ४ जीवंप्राणग्रन्थिं,
५ कुरु स्वाहा ।
ह्रीं हंसः, संजीविनि, जूं हंसः कुरु कुरु, कुरु सौः सौः, स्वाहा ।
How do download Mrit Sanjeevani Kavach Lyrics PDF in Hindi?
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